Thursday 4 September 2014

डिजिटल इंडिया' कार्यक्रम



आज की जरूरत है यह कार्यक्रम

Sun, 31 Aug 2014 

एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष गणराज्य होने के चलते भारत देश कई क्रांतियों का गवाह रहा है। चाहे वह हरित क्रांति हो, श्वेत क्रांति हो या फिर मोबाइल क्रांति। अब सरकार संपूर्ण भारत को डिजिटल करने वाली नई क्रांति के साथ 'डिजिटल इंडिया' कार्यक्रम को आगे बढ़ा रही है। यह अब तक के भारत की सबसे अहम योजनाओं में से एक है। इसके माध्यम से समाज का डिजिटल सशक्तीकरण और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में देश का कायाकल्प किया जा सकता है।
भारतीय गणराज्य के इतिहास में पहली बार डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से यह उम्मीद की जा रही है कि नागरिकों को सभी सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल के इको सिस्टम माध्यम से रीयल टाइम में आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी। इस कार्यक्रम में मुख्य फोकस सरकारी गतिविधियों से भारतीयों के जुड़ाव का सशक्तीकरण करना और सहभागिता वाली गवर्नेस को नया आयाम देना है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत कई महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। डिजिटल भविष्य के मद्देनजर ब्राडबैंड हाइवे निर्माण को इसकी नींव माना जा रहा है। ऐसे भविष्य में ज्ञान ही सबका संचालक होगा और एक समृद्धि माहौल में हर चीज के लिए किसी उत्प्रेरक जैसा साबित होगा। प्रत्येक नागरिक के लिए उपयोगी सेवा मुहैया कराने के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का सृजन किया जाएगा। ऐसी बुनियादी सेवाओं के बूते देश ज्ञान के एक ऐसे भविष्य की ओर उन्मुख होगा जहां शासन और सेवा हर मांग पर हाजिर होंगी।
देश के नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण इस कार्यक्रम का सूत्रवाक्य है। इसे सार्वभौमिक डिजिटल साक्षरता के माध्यम से हासिल किया जा सकेगा। सरकार एक ऐसा तंत्र विकसित करने को अग्रसर है जिसमें हर किसी की एक डिजिटल पहचान होगी, जो विशिष्ट, जीवनपर्यत, आनलाइन और विश्वसनीय होगी।
देश में मोबाइल फोन की तीव्र पहुंच के बीच जहां कुल आनलाइन उपभोक्ता के आधे से ज्यादा लोग मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, सरकार मोबाइल उपभोक्ताओं की इस भारी भरकम फौज की सवारी करने को आतुर है। बचे हुए लोगों के हाथों में मोबाइल फोन थमाकर और सबके लिए बैंक खाते खुलवाकर डिजिटल और फाइनेंसियल स्थान में उनकी सहभागिता कराई जा सकेगी। सरकारी सेवाओं को मुहैया कराने के लिए क्लाउड सिस्टम का चयन किया गया है। सरकारी सेवाएं रीयल टाइम में आनलाइन और मोबाइल प्लेटफार्म पर उपलब्ध होंगी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सार्वजनिक क्लाउड पर साझा किए जाने लायक निजी स्थान मुहैया कराना है। साइबर सुरक्षा पर अभूतपूर्व रूप से ध्यान केंद्रित करके डिजिटल इंडिया कार्यक्रम महफूज और सुरक्षित साइबर स्पेस की आधारशिला रखेगा। इस दूरदर्शी कार्यक्रम से सभी डिजिटल संसाधनों की सार्वभौमिक अभिगम्यता सुनिश्चित करने के अलावा एक ऐसा डिजिटल सामूहिक मंच मुहैया कराने का लक्ष्य भी है जो सहभागिता वाले शासन के विभिन्न अंगों-उपांगों के बीच संचार स्थापित कर सके। इसके माध्यम से ई-क्रांति, ई-कोर्ट, ई-पुलिस, ई-जेल, ई-प्रॉसीक्युशन जैसे नवोन्मेषी अवधारणाओं को मूर्त रूप दिया जाएगा। इस अहम कार्यक्रम से जिस नए भविष्य को दिशा मिलेगी वह इलेक्ट्रानिक और नकदी रहित वित्तीय लेनदेन होंगे। संचार के प्राथमिक तरीके के लिए ई-मेल की कल्पना की गई है। सरकार के भीतर सभी विभागों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए सुरक्षित ईमेल के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा। पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम इस योजना का अहम अंग है। इससे लोगों के हाथ मजबूत होंगे। तमाम खूबियों वाला यह प्रोग्राम काबिले तारीफ है। यह न केवल भारतीयों का बल्कि देश का भी सशक्तीकरण करता है। अहम यह है कि इस कार्यक्रम से भारतीयों के जीवन में आमूलचूल बदलाव लाए जा सकेंगे। इसका उद्देश्य भारत को डिजिटल और आइटी का महाशक्ति बनाना है।
इन सबके बीच आगे बढ़ने से पहले यह आवश्यक है कि इस प्रोजेक्ट को कुशल और प्रभावकारी रूप में लागू करने के लिए उपयुक्त कानूनी ढांचे की दरकार होगी।
-पवन दुग्गल [प्रेसीडेंट, साइबरलॉज.नेट]
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कार्य-संस्कृति का कायाकल्प

Sun, 31 Aug 2014

प्रोजेक्ट
डिजिटल इंडिया। मोदी सरकार का एक ऐसा महत्वाकांक्षी छतरी कार्यक्रम जिसके माध्यम से देश के प्रत्येक नागरिक का डिजिटल सशक्तीकरण किए जाने की योजना है। हर गांव, कस्बा, पंचायत और शहर को ब्राडब्रैंड इंटरनेट कनेक्शन से जोड़ने की मुहिम। प्रत्येक आदमी के हाथ में स्मार्ट फोन थमाने की कोशिश जो इस परियोजना के डिलीवरी प्रणाली का आधार बनेगा। 1.13 लाख करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी योजना के मूर्त रूप लेने के बाद देश का कोई भी नागरिक कहीं से भी किसी प्रकार की सरकारी सेवा बड़ी सहजता से ले सकेगा। बहुआयामी उद्देश्यों की पूर्ति करने वाली इस योजना से देश की पूरी कार्य-संस्कृति बदलने का इरादा है। तकनीक के सहारे लोगों के भविष्य को तराशते हुए देश की अर्थव्यवस्था को तेज करना भी इसके निहितार्थो में से एक है।
रिजेक्ट
आज कोई भी एक छोटा सा काम कराना हो, तो समझिए आपका पूरा दिन खराब होना ही है। बैंक में पासबुक इंट्री करानी हो, तो वहां जाकर लाइन में लगना पड़ता है। बैंक बाबू के ऊपर काम का कृत्रिम बोझ आपको आतंकित कर सकता है। काम के दौरान बात-बात पर देसी सास की तरह उनका तुनकना हर पल मनोरथ की पूर्ति के प्रति आपको सशंकित किए रहा। बारी आने पर आप खुद को अतिरिक्त विनम्रता दिखाने से न चाहते हुए भी रोक नहीं पाए। इन घंटों न सही, मिनटों में आपके मन-मस्तिष्क पर जो दबाव कायम रहा, उसका हर्जाना कौन देगा। यह केवल एक सरकारी दफ्तर का वाकया नहीं हैं, बानगी भर है। शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, नगर निगम जैसे किसी भी रोजमर्रा के काम वाले विभागों में यही दबाव कायम है। तमाम पारदर्शी उपायों के बावजूद भ्रष्टाचार का इकबाल बुलंद है। आपके लाइन में खड़े रहने के दौरान ही तमाम अघोषित अनैतिक काम निपटा दिए जाते हैं। आम आदमी चुपचाप, मूकदर्शक बने रहने को अभिशप्त है। ऐसी कार्य-संस्कृति को कौन नहीं खारिज करना चाहेगा।
सब्जेक्ट
विश्व पटल पर अपनी एक मुकम्मल पहचान बनाने के लिए अन्य पक्षों के अलावा किसी भी देश की संस्कृति और कार्य-संस्कृति का अहम योगदान होता है। भारतीय संस्कृति का जलवा-जलाल दुनिया के सभी मुल्कों पर तारी है। इस मजबूत संस्कृति का क्षरण हमने नहीं होने दिया है, लेकिन यहां की कार्य-संस्कृति को लेकर विश्वबैंक से लेकर तमाम अंतरराष्ट्रीय मंच बखूबी वाकिफ हैं। उन्हें पता है कि किसी निर्माण कार्य की अगर आपको अनुमति लेनी हो तो औसतन 196 दिन यानी छह महीने से अधिक का समय लग सकता है। ऐसे में मोदी सरकार द्वारा आम आदमी के डिजिटल सशक्तीकरण और देश की कार्य-संस्कृति के कायाकल्प को लेकर शुरू की गई इस पहल की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
जनमत
क्या सरकार के प्रस्तावित डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट से आम आदमी को हर सरकारी सेवा लेने में आसानी होगी?
हां 87 फीसद
नहीं 13 फीसद
क्या हर जरूरत बस एक क्लिक से आनलाइन पूरी करके लोगों की सेवा से जुड़ी सरकारी कार्यालयों की बड़ी विसंगति दूर की जा सकती है?
हां 38 फीसद
नहीं 62 फीसद
आपकी आवाज
जब एक क्लिक में हमारी जरूरतें पूरी होने लगेगी तब सरकारी कार्यालयों में बैठे ऐसे बाबू लोग जो केवल फाइलों का ढेर लगाने में माहिर हैं, निश्चय ही अपनी सोच बदलने को मजबूर होंगे। आशा है डिजिटल इंडिया कार्यक्रम इन विसंगतियों को दूर करने में क्रांतिकारी भूमिका अदा करेगा। -संजयरईस@जीमेल.कॉम
डिजिटल इंडिया ही एक मात्र रास्ता है, जिसके माध्यम से इंडिया को डेवलप किया जा सकता है। आधुनिकता के दौर में हमारा आगे बढ़ना बेहद आवश्यक है। यह कदम इस दिशा में सार्थक सिद्ध होगा। -रश्मि456राय@जीमेल.कॉम
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ये मेरा डिजिटल इंडिया

Sun, 31 Aug 2014 

आइटी+आइटी = 2(आइटी) यानी इंडिया टुडे+ इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी = इंडिया टुमारो। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन डिजिटल इंडिया के मर्म को समझने के लिए पर्याप्त है। यह प्रोजेक्ट सरकारी सेवाओं के लिए उस एकल खिड़की की तरह होगा जहां खड़ा होकर कोई भी नागरिक किसी भी सेवा को पा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए लोगों के हाथ में मौजूद फोन इस योजना का रीढ़रज्जु बनेगा। 1.13 लाख करोड़ लागत वाली सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी छतरी योजना नौ स्तंभों पर टिकी है। जिनके माध्यम से पूरे देश की कार्य-संस्कृति को बदलते हुए संपूर्ण डिजिटल क्रांति लाने का, देश को एक संबद्ध अर्थव्यवस्था में तब्दील करते हुए इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग में निवेश को आकर्षित करने का, लाखों रोजगार को सृजित करके कारोबार को मजबूती देने का लक्ष्य है। इस कार्यक्रम को चालू वित्ता वर्ष 2014-15 से शुरू कर 2018 तक चरणबद्ध ढंग से लागू किया जाएगा। इसके सभी स्तंभों पर पेश है एक नजर:
ब्राडबैंड हाइवे
इंटरनेट का विस्तार देश के विकास को रफ्तार देगा। इसके लिए नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क देश में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में क्रांति ला देगा। इस परियोजना के तहत साल 2017 तक देश के ढाई लाख गांवों में हाईस्पीड ब्राडबैंड इंटरनेट पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के जरिये गांवों को इंटरनेट सुपरहाईवे से समृद्ध किया जाएगा। यह नेटवर्क ई-कॉमर्स की क्रांति लाने में भी मददगार साबित होगा। जब इंटरनेट देश के सभी शहरों और गांवों में पहुंच जाएगा तो लोग आनलाइन शॉपिंग के लिए प्रोत्साहित होंगे। इससे देश में ई-कॉमर्स का विस्तार होगा। भंडारण की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता पड़ेगी। इससे न केवल नौकरियों के ज्यादा मौके उपलब्ध होंगे, बल्कि अर्थव्यवस्था के विकास का भी रास्ता खुलेगा। ग्लोबल फर्म पीडब्ल्यूसी और उद्योग चैंबर एसोचैम के साझा अध्ययन के मुताबिक साल 2017 से 2020 तक देश में ई-रिटेल उद्योग का आकार 10 से 20 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
सभी के हाथ में मोबाइल
इस कार्यक्रम का आधार मोबाइल फोन होगा। इसके माध्यम से ही सारी जरूरतें, जानकारियां और जवाबदेही तय की जाएंगी लिहाजा सभी नागरिकों तक मोबाइल की पहुंच का लक्ष्य वित्ताीय वर्ष 2018 रखा गया है। इस अवधि तक देश के सभी ग्रामीणों के हाथ मोबाइल पहुंच चुका होगा। इसमें करीब 16 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी।
पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम
मार्च, 2017 तक देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में एक आम सेवा केंद्र स्थापित किया जाएगा। इसके माध्यम से भी लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकेंगे। 1.5 लाख डाकघर भी इससे जुड़ी कई सेवाएं मुहैया कराएंगे। इसमें करीब 4750 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान है।
ई गवर्नेस
तकनीक के इस्तेमाल से सरकार और उसकी कार्य-संस्कृति को संवारने की मंशा के तहत हर तरीके के प्रमाणपत्र को आनलाइन मुहैया कराने की कोशिश होगी। हर नागरिक की एक विशिष्ट पहचान होगी। इसके अलावा उससे जुड़े अन्य प्रपत्रों एवं सूचनाओं का एक आनलाइन संग्रह होगा। सरकार के विभिन्न विभाग इन प्रपत्रों एवं सूचनाओं को देख व साझा कर सकेंगे। कई तरीके की सेवाओं और मंचों को एकीकृत किया जाएगा। सरकार की कार्यप्रणाली को पारदर्शी एवं ऑटो मोड में लाने की कोशिश होगी। जन शिकायतों का त्वरित निपटारा।
ई-क्रांति
इसके तहत सभी सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी सुनिश्चित होगी। ब्राडबैंड के माध्यम से ई-एजुकेशन, ई- हेल्थकेयर जैसे कार्यक्रमों का लोग लाभ उठा सकेंगे। वाई-फाई सुविधा मुफ्त होगी। आनलाइन कोर्स उपलब्ध कराए जाएंगे। आनलाइन सलाह, रिकार्डो की आपूर्ति होगी। किसानों को खेती-किसानी से जुड़ी जानकारियां आनलाइन मिलेंगी। सबका वित्ताीय समावेश किया जाएगा। ई-कोर्ट, ई-पुलिस आदि की सुविधा।
सभी के लिए सूचना
सूचनाएं और प्रपत्र आनलाइन अपलोड किए जाएंगे। सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार लोगों से जुड़ी होगी। इसके लिए बहुत अल्प संख्या में संसाधनों की जरूरत होगी।
इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग
इस समग्र कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इलेक्ट्रानिक उत्पादों के निर्माण में देश का आत्मनिर्भर बनना बहुत जरूरी है। अभी पेट्रोलियम पदार्थो और सोने के आयात में सर्वाधिक धन खर्च करने के बाद तीसरा नंबर इन्हीं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आता है। इसके लिए सेमी कंडक्टर उत्पादों को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। सरकार को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के शून्य आयात के लक्ष्य को पाया जा सके। फैबलेस डिजायन, सेट टॉप बाक्स, वीसेट, मॉडम, कंज्यूमर और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट एनर्जी मीटर्स, स्मार्ट कार्ड, माइक्रो एटीएम आदि की जरूरत पूरी की जा सकेगी।
आइटी में रोजगार सृजन
अगले पांच साल के दौरान कस्बों और गांवों के एक करोड़ लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इसी अवधि के दौरान पांच लाख ग्रामीण आइटी कार्य शक्ति तैयार करने का लक्ष्य होगा। पूर्वोत्तार के हर राज्य में बीपीओ की सुविधा होगी।
उत्पादकता में वृद्धि
संसाधनों के पूरे इस्तेमाल पर जोर होगा। सभी सरकारी महकमों में बॉयोमेट्रिक्स उपस्थिति का लाभ लिया जाएगा। सभी विश्वविद्यालय वाई फाई से लैस होंगे। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में हॉट स्पॉट विकसित किए जाएंगे। पर्यटक केंद्रों के साथ ई-बुक जैसी सुविधा की व्यवस्था सुनिश्चित होगी। प्राकृतिक आपदाओं की एसएमएस से सूचना मिलेगी। मौसम की सटीक जानकारी पूर्व तैयारी के लिए अहम होगी।
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देश के सुनहरे भविष्य का बहुत पथरीला है रास्ता

Sun, 31 Aug 2014

यह डिजिटल समावेशी प्लान 21वीं सदी की सामाजिक समावेशी रणनीति का महत्वपूर्ण तत्व है। इस विकासवादी नजरिये में वंचित तबके समेत सभी नागरिकों को इंफार्मेशन एंड कम्युनिकेशंस टेक्नोलॉजी (आइसीटी) की सेवाएं और जरूरी योग्यताएं सुनिश्चित कराना है ताकि वे सहभागी बनकर बढ़ते ज्ञान और सूचनाओं से लाभ पा सकें। डिजिटल समावेश का जरूरी तत्व इंटरनेट की सार्वभौमिक पहुंच से है। यानी एक ऐसी दशा जहां प्रत्येक नागरिक सार्वजनिक रूप से आइसीटी के जरिये सूचनाओं को प्रसारित और संचारित कर सके। सभी बड़े सरकारी कार्यक्रमों और उपक्रमों के बावजूद हमारी चिंता यह है कि अभी भी हम कुछ संबंधित बुनियादी मुद्दों का पर्याप्त रूप से समाधान खोजने में नाकाम रहे हैं। इसके चलते आइसीटी विकास सूचकांक (आइडीआइ) में हमारा स्थान गिर रहा है। 151 देशों की सूची में 2011 के 120वें स्थान से एक स्थान फिसलकर हम 2012 में 121वें स्थान पर पहुंच गए हैं। हमारी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक इंटरनेट की कनेक्टिविटी और पहुंच है। इसके चलते हम अपने लगातार बढ़ते महत्वाकांक्षी इंटरनेट/ब्राडबैंड लक्ष्यों को पाने में लगातार विफल रहे हैं। वैश्विक रूप से इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आइटीयू) के मुताबिक देशों के बीच आइसीटी से कनेक्ट होते जा रहे हैं। 2013 के अंत तक करीब 40 प्रतिशत यानी करीब 2.8 अरब वैश्रि्वक आबादी ऑनलाइन हो चुकी है। इसके बावजूद कई समुदायों में कनेक्टिविटी की पहुंच और अनुपलब्धता के कारण डिजिटल डिवाइड संकल्पना लगातार चौड़ी होती जा रही है। आइटीयू आइडीआइ 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक 12.6 प्रतिशत ऑनलाइन आबादी के साथ 200 देशों में भारत की 145वीं रैंक थी। हम दुनिया के सबसे कम कनेक्टड देशों (एलसीसी) के साथ निचले पायदान पर खड़े हैं।
यद्यपि डिजिटल इंडिया प्लान के कई तर्कसंगत आधारस्तंभ हैं लेकिन हमारी निजी राय में सार्वभौमिक इंटरनेट की पहुंच कार्यक्रम को प्राथमिकता में रखने के बाद ही इससे जुड़े अन्य कार्यक्रमों को सफलता सुनिश्चित की जा सकती है। देश में करीब 5100 नगर/शहर हैं और करीब 389 शहरी केंद्र हैं। यहां कि आबादी करीब 36.8 करोड़ या 28 प्रतिशत है। अधिकांश बड़े आइसीटी कार्यक्रम केंद्रीकृत प्रबंधन वाले ऊपर से नीचे तक पहुंच दृष्टिकोण के हैं। इस पर पुनर्विचार की जरूरत है। पिछले दशक में इंटरनेट/ब्राडबैंड में इस दृष्टिकोण से अपेक्षित नतीजे नहीं मिले हैं।
* केंद्रीकृत फोकस को रखते हुए हमें चाहिए कि नगर/शहर प्रशासन स्थानीय स्तर पर जमीनी सच्चाई को ध्यान में रखते हुए अपने लिए सार्वभौमिक इंटरनेट पहुंच से संबंधित नीतियों को बनाकर क्रियान्वित करें। यह उनके शहरी विकास योजना का हिस्सा होना चाहिए। म्युनिसिपल कारपोरेशन को यह जिम्मेदार सौंपी जा सकती है।
* इन शहरी योजनाओं में झुग्गियों में रहने वाले आर्थिक रूप से वंचित तबके को शामिल करना चाहिए। हर शहर में यह आबादी वहां का 30-70 प्रतिशत तक हिस्सा होती है। इनको भी दायरे में लाने की कोशिश होनी चाहिए
* शहरी योजनाकारों को कार्यक्रमों के लक्ष्य को हासिल करने संबंधी जानकारियों के लिए इनको छोटे-छोटे दायित्वों में बदल देना चाहिए। मसलन उपलब्ध कंप्यूटरों की संख्या, इंटरनेट की पहुंच से संबंधित सुविधाओं की संख्या। स्थानीय आबादी के विभिन्न तबकों की अपनी सामाजिक, शैक्षिक, बिजनेस संबंधी गतिविधियों के लिए ऑनलाइन पर बढ़ती संख्या की भी पहचान सुनिश्चित की जानी चाहिए
* स्थानीय प्रबंधन संरचना वाले नगर/शहर सार्वभौमिक सेवा दायित्व फंड बनाया जाना चाहिए। इसके जरिये अपनी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए संसाधनों का सृजन और उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए
* जिस तरह शहर में बिजली, सड़क, सीवेज की सुविधाएं होती हैं उसी तरह म्युनिसिपल कारपोरेशन को इंटरनेट से संबंधित आधारभूत ढांचा के क्रियान्वयन पर विचार करना चाहिए
* एमसी योजना और डिजाइन बनाकर म्युनिसिपल सुविधाओं को इंटरनेट ढांचे से जोड़ सकेंगी। इससे स्मार्ट सिटी विकसित करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
* एमसी द्वारा क्त्रियान्वयन के स्तर पर समयबद्ध और सक्षम तरीके से अवरोधों को दूर करने से बड़े स्तर की विफलता को रोका जा सकेगा।
* एप्लीकेशंस और सर्विसेज से संबंधित समस्याओं के लिए सोशूल्यंस का बाजार भी विकसित होना चाहिए।
* कंप्यूटर, मोबाइल, फिक्स्ड लाइन, घरों और बिजनेस में कंप्यूटर और इंटरनेट की पहुंच, उपलब्धता और उपयोगिता पर निगरानी रखनी चाहिए। इनके आधार पर स्थानीय सरकारें डिजिटल रणनीतियों की सफलता या विफलता का आकलन कर सकती हैं।
इसी तरह का विकेंद्रित तरीका देश के 6,40,000 गांवों में भी अपनाकर आइसीटी का विकास किया जा सकता है। वहां पर इन कार्यो के लिए स्थानीय ग्राम पंचायत नोडल इकाई की भूमिका निभा सकती है।
-अमिताभ सिंघल [डाइरेक्टर, टेलेक्सेस कंसल्टिंग सर्विसेज, दिल्ली]
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मिटेगी भारत और इंडिया की दूरी

Sun, 31 Aug 2014 

कुछ दिन पहले केंद्रीय सरकार ने एक लाख 13 हजार करोड़ के निवेश से डिजिटल इंडिया नामक कार्यक्रम को स्वीकृति देकर इंडिया और भारत के बीच की खाई को पाटने का एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके तीन मुख्य पहलू हैं, प्रत्येक नागरिक के लिए सुविधा के रूप में बुनियादी ढांचा जैसे कि पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ना, मोबाइल सेवाओं का विस्तार और मोबाइल से वित्तीय समावेश। शासकीय सेवाओं को नागरिकों के द्वार पहुंचाना जिससे उन्हें लंबी कतारों, भ्रष्टाचार और मजदूरी के नुकसान से निजात मिले और प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिकों का सशक्तीकरण करना जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य,और कौशल का विकास, साथ ही कंप्यूटर और मोबाइल पर भारतीय भाषाओं में काम करने को और आसान बनाना। लगभग एक लाख करोड़ रुपये के निवेश की स्वीकृति पहले ही हो चुकी थी पर 13 हजार करोड़ की नई स्वीकृति दी गई है। अधिकांश हिस्सा भौतिक ढांचे के लिए पर शेष राशि सरकारी सेवाओं के विकास और प्रसार की ओर लक्षित है। यह सराहनीय है कि प्रणालीगत सुधार और प्रबंधन पर भी ध्यान दिया जाएगा अन्यथा ऐसे निवेश का पूरा लाभ नहीं मिलेगा।
प्रासंगिकता
अभावग्रस्त लोगों की सबसे बड़ी समस्या है कि उनको बुनियादी ढांचे, न्यायसंगत अवसर और रोजमर्रा की सरकारी सेवाएं नहीं मिल पाती हैं। परिणामस्वरूप उनका पूर्ण संभावित शारीरिक व मानसिक विकास नहीं होता है और ज्ञान-कौशल के अभाव में जीवन संघर्ष और भी कठिन हो जाता है। दुनिया भर में और विशेष रूप से भारत में सैकड़ों प्रयोगों में यह सिद्ध हो चुका है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के विचारशील एवं रचनात्मक इस्तेमाल से न केवल अवसर की समानता बढ़ती है अपितु राष्ट्र की समग्र सामाजिक, आर्थिक पूंजी में भी वृद्धि होती है। लोगों के रहन-सहन में प्रत्यक्ष सुधार दिखता है।
समावेशी विकास के लिए यह जरूरी है कि ऐसी कोई भी परियोजना समाज के निर्बल और अपवर्जित हल्के लोगों की आशाओं को उड़ान दे, ज्ञानवर्धन और प्रतिभा-कौशल के विकास के अवसर दे, जिससे वे अपने जीवनस्तर को बेहतर करने में सक्षम बनें और देश की तरक्की का हिस्सा बनें। यदि सभी बच्चों को शिक्षा मिले, सभी को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों और पात्रता अनुसारिक लाभ बिना किसी भेदभाव, भ्रष्टाचार या मनमानी के प्राप्त हों तो कितना अच्छा होगा। सरकारी तंत्र की जवाबदेही और पारदर्शिता भी बढ़ेगी। पिछले कई वर्षो से विश्व में भारत की एक नई पहचान बनी है जिसका श्रेय बहुत हद तक हमारे देश में आइटी के क्षेत्र में लगे लोगों को जाता है। न केवल कई भारतीय कंपनियों ने दुनिया में अपना सिक्का जमाया अधिकांश विश्वस्तरीय कंपनियों ने भी भारत में अपने शोध एवं विकास केंद्रों में निवेश किया और इस गतिशील इकोसिस्टम में सराहनीय योगदान किया। बेंगलूर, पुणे, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में इसका असर साफ दिखता है और गुड़गांव को सहस्नाब्दी शहर का खिताब इसी की बदौलत से मिला।
नूतन अवसर एवं सेवाएं
इस कार्यक्रम से न केवल सेवा में सुधार हो सकता है, अपितु नई सेवाओं और सुविधाएं भी संभव होंगी। जैसे आर्थिक समावेश के लिए जन-धन योजना, मोबाइल फोन के माध्यम से बैंकिंग तथा अन्य वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराना और दूर-दराज से ही डॉक्टर बीमारी की जांच और जल्दी से इलाज की प्रक्रिया कर सकते हैं। किसान पटवारी की मनमानी से बच सकता है। एक छात्रा अपनी छात्रवृत्ति आधार के द्वारा प्रमाणीकरण अपने मोबाइल से अनुबद्ध बैंक अकाउंट में से इस्तेमाल कर सकती है। आज भी भारत के ज्यादातर गांव प्रेमचंद की कहानियों के वर्णन से ज्यादा नहीं बदले हैं पर शायद गोदान का होरी शहर में रहने वाले बेटे से बात तो कर लेता। सड़क और बिजली से ज्यादा टेलीविजन और मोबाइल का विस्तार हो गया है।
चुनौतियां
जहां अनगिनत संभावनाएं है, कई चुनौतियां भी आएंगी। लेकिन यदि हम पहले से आगाह और चुस्त रहे तो उनको भी आसानी से निपटा सकते हैं। राजनीतिक इच्छाशक्ति और निर्णायक नेतृत्व से विभिन्न मंत्रालयों और केंद्र व राज्यों के बीच परस्पर विश्वासपूर्ण सामंजस्य का वातावरण बन सकता है।
इंटरनेट, मोबाइल और सोशल नेटवर्क पर बढ़ती निर्भरता का अर्थ है कि हमारी महत्वपूर्ण निजी और संवेदनशील जानकारी किसी कंप्यूटर या नेटवर्क में निवास करती है और पलक झपकते ही दुनिया भर में फैले संचार तंत्र के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक चली जाती है। इस जानकारी की सुरक्षा करना भी जरूरी है। अनचाहे या आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा फैलाये हुए जाल से भी बचकर रहना है।
अनुशंसाएं
राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति व सार्वभौमिक इलेक्ट्रानिक अभिगम्यता नीति के अनुपालन के अतिरिक्त पुरातन, अप्रचलित और असंगत कानूनों और नियमों को तिलांजलि देकर मानसिकता में सुधार की भी आवश्यकता है। भारतीय भाषाओं के लिए आसानी से उपयुक्त साफ्टवेयर, एप्लिकेशन और ज्ञान एवं मनोरंजन की सामग्री का विकास तथा उपलब्धता बढ़ाने की, विवादास्पद मुद्दों के त्वरित हल निकालने के लिए संवाद और रचनात्मक सहयोग के समुचित प्लेटफार्म बनाने होंगे। सरकारी तंत्र अकेले सब कुछ नहीं कर सकता। इसलिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में भागीदारी के लिए आदर्श समझौतों की आवश्यकता है चाहे वह निवेश की बात हो या सुरक्षा की। सामान्य वित्तीय नियम और क्रय के नियमों में सुधार चाहिए, साथ ही सूचना के अधिकार, ओपन डाटा तथा अन्य नीतियों के तहत सारी जानकारी इंटरनेट के माध्यम से सुलभ और उपलब्ध होनी चाहिए। नागरिक भागीदारी के लिए व्यापक और निरंतर परामर्श होना चाहिए। विशेष रूप से क्षेत्रीय करने के पहलुओं को आंकने और कार्यक्रम प्रगति पर दृष्टि रखने के लिए भी ओपन डाटा प्रयोग हो। क्लाउड कंप्यूटिंग को लेकर डाटा स्थानीयकरण की सोचने से पहले हमें राष्ट्रकवि दिनकर की कविता, पक्षी और बादल याद करनी चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि बादल के लिए कोई भौतिक सीमा नहीं होती। हमारे सौ अरब डॉलर की आउटसोर्सिग का भविष्य भी संशय में पड़ जाएगा क्योंकि दूसरे देश भी तो ऐसा कर सकते हैं। सुरक्षा के लिए कुछ मानक तकनीक हैं। सुरक्षा डिजिटल इंडिया का अभिन्न पहलू होना चाहिए। आम जनता की सुरक्षा के अतिरिक्त महत्वपूर्ण और संवेदनशील संस्थानों में विशेष नीति के अनुपालन और अत्याधुनिक तकनीक से सुदृढ़ सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। डिजिटल इंडिया भारत की जनता के भविष्य को संवारने में वास्तव में एक अहम भूमिका निभा सकता है।
-दीपक माहेश्वरी [प्रमुख, गवर्नमेंट अफेयर्स, सिमैन्टेक]

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