Monday 27 October 2014

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवाली पर कश्मीर यात्रा




कश्मीर के लिए

24-10-14

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवाली पर कश्मीर यात्रा मानवीय नजरिये से और राजनीतिक निहितार्थो के नजरिये से भी महत्वपूर्ण थी। घाटी से आने वाली प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि नरेंद्र मोदी का कश्मीर पहुंचना भयानक बाढ़ के असर से जूझते हुए लोगों के दर्द पर कुछ मरहम लगाने में कामयाब रहा। मौजूदा राज्य सरकार कश्मीर में अलोकप्रिय हो गई है और लोगों को यकीन नहीं है कि वह प्रभावशाली ढंग से राहत का काम कर सकती है। बाढ़ के दौरान सरकार जैसे नदारद हो गई थी, उससे यह यकीन और पुख्ता होता है। मोदी के पहुंचने से यह उम्मीद जगी है कि कम से कम केंद्र सरकार कुछ ठोस राहत कार्य कर सकती है। मोदी ने लोगों के उजड़े हुए मकान फिर से बनाने के लिए जो 570 करोड़ रुपये की राहत राशि की घोषणा की है, वह राज्य सरकार के जरिये नहीं, सीधे पीड़ितों के बैंक खाते में जमा हो जाएगी। इससे मोदी ने यह राजनीतिक संदेश दिया है कि राज्य सरकार के भ्रष्टाचार और शिथिलता की वजह से उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मोदी अपनी छवि एक साफ-सुथरे, तेज तर्रार और कुशल प्रशासक की तरह पेश करते हैं। इस छवि का फायदा लोकसभा के आम चुनावों से लेकर अभी-अभी महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हुआ है। इसी प्रभाव को वह कश्मीर घाटी में फैलाना चाहते हैं। कश्मीर घाटी में भाजपा की राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं है। एक तो उसकी छवि मुस्लिम विरोधी होने की है, दूसरे वह कश्मीर में सख्त फौजी कार्रवाई की भी समर्थक है। इसके बावजूद भाजपा ने अगले विधानसभा चुनावों में मिशन 44 से ज्यादा सीटों का लक्ष्य बनाया है। 37 सीटें जम्मू क्षेत्र में हैं, जिन पर भाजपा को सफलता की उम्मीद है। वह लद्दाख में और घाटी में भी कुछ सीटें निकालने की कोशिश में है। घाटी की ज्यादातर सीटों पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की भारी कामयाबी का अंदाजा लगाया जा रहा है और इस नाते पीडीपी सरकार बनाने की बड़ी दावेदार होगी। ऐसे में, भाजपा को अच्छी कामयाबी मिली, तो पीडीपी के लिए भाजपा से गठबंधन करना जरूरी होगा। इस सोच से भाजपा कश्मीर की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में है। जम्मू-कश्मीर के लोग राजनीति और प्रशासन में भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके हैं। केंद्र से जितना पैसा राज्य को मिलता है, उसका बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। इसीलिए जम्मू-कश्मीर में बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की हालत बहुत खराब है। भाजपा को कुशल और साफ-सुथरे प्रशासन के दावे के साथ कश्मीर में अपनी जगह बनाने की उम्मीद है। भाजपा के लिए राज्य में सत्ता में आना इसलिए भी अच्छा होगा, क्योंकि तब उसे अपने कट्टर नजरिये में बदलाव करके उदार और लचीला रुख अपनाना होगा। कश्मीरियों की समस्याओं के प्रति अगर भाजपा में संवेदनशीलता बढ़ती है, तो यह व्यापक भारतीय राजनीति के लिए और कश्मीर समस्या के हल के लिए अच्छा होगा। साथ ही अगर जम्मू-कश्मीर में प्रशासन साफ-सुथरा होता है, तो इससे जनता को बड़ी राहत मिलेगी। नरेंद्र मोदी ने इस यात्रा में सियाचिन जाकर सैनिकों के साथ भी वक्त बिताया। दस साल के बाद किसी प्रधानमंत्री की यह सियाचिन यात्रा है। इससे सैनिकों का मनोबल तो बढ़ा ही होगा, साथ ही यह पाकिस्तान को भी संदेश देने का एक तरीका था। मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कश्मीर पर जिस तरह फोकस बनाए रखा है, वह महत्वपूर्ण है। इस विशेष फोकस का लाभ जम्मू-कश्मीर को सचमुच मिल पाए, तो इस क्षेत्र के लिए बहुत फायदेमंद होगा।
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कश्मीर में प्रधानमंत्री

दिवाली के मौके पर जब ज्यादातर देशवासी अपने घरों में परिजनों के संग पर्व की खुशियों से सराबोर थे, हमारे प्रधानमंत्री दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल कहे जाने वाले सियाचिन के मोर्चे पर तैनात सेना के जवानों का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ बाढ़ में तबाह हो चुकी कश्मीर घाटी के जख्मों पर मरहम लगा रहे थे। यह पहला अवसर है जब देश के किसी प्रधानमंत्री ने, वह भी एक पर्व के दिन, सियाचिन का दौरा किया। यकीनन इससे वहां तैनात सेना के जवानों और अफसरों का मनोबल ऊंचा हुआ होगा। सियाचिन के संबोधन में प्रधानमंत्री ने जिस तरह सैनिकों की समस्याएं गिनाते हुए उनके निराकरण का वायदा किया, उससे सैनिकों में यह भाव जरूर मजबूत हुआ होगा कि देश और उसके सर्वोच्च कार्यकारी को उनके समर्पण, त्याग और बलिदान भाव की कद्र है। सियाचिन में जिन विषम परिस्थितियों के बीच हमारे जवान देश की सुरक्षा के लिए तत्पर हैं, उनका मनोबल बढ़ाने के लिए सुविधाओं और सैन्य साजोसामान के साथ भावनात्मक संबल की भी बड़ी दरकार होती है। प्रधानमंत्री का दौरा यकीनन इस जरूरत को पूरा करने वाला रहा। दिवाली पर कश्मीर घाटी में प्रधानमंत्री की मौजूदगी के गहन निहितार्थ भी हैं। दरअसल, पाकिस्तान और उसके पिट्ठू अलगाववादी लंबे वक्त से कश्मीरियों को भरमाते रहे हैं कि भारत उनका हितैषी नहीं है और अपनी फौज के बल पर जबरन कश्मीर पर कब्जा जमाए हुए है। ऐसे में विनाशकारी बाढ़ का आगमन माकूल अवसर था कि पाकिस्तानी प्रचार को झूठा साबित किया जाए। भारत सरकार और सेना इस मौके का लाभ उठाने में बहुत हद तक सफल रही है। पहले हमारी सेना ने अपनी दिक्कतों की परवाह किए बगैर कश्मीर में जिस प्रभावी ढंग से राहत-बचाव कार्य चलाया, उससे उसे आक्रमणकारी बताने का कुप्रचार बेपर्दा हुआ। खुद प्रधानमंत्री भी बाढ़ आने के तत्काल बाद कश्मीर पहुंचे थे और अब दिवाली के अवसर पर उन्होंने फिर से कश्मीरियों के दुख-दर्द में शरीक होने और उन्हें इससे उबारने में कोई कसर न रखने का संदेश दिया है। सियाचिन में सैनिकों का मनोबल बढ़ाने और साथ ही कश्मीरियों का दिल जीतने की कोशिश करने की रणनीति यकीनन प्रभावी रहने वाली है। कश्मीर के सिलसिले में ऐसी पहल या रणनीति की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि पाकिस्तान हर मुमकिन तरीके से कश्मीर के मसले को गरमाने की कोशिश कर रहा है। इस क्रम में वह एक तरफ विश्व समुदाय और संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग कर रहा है तो दूसरी तरफ आए दिन सीमा पर गोलाबारी कर तनाव बढ़ा रहा है। अब एक कदम आगे बढ़कर पाकिस्तानी संसद ने संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप भारत पर लगाते हुए निंदा प्रस्ताव पारित किया है। इन हालात में पाकिस्तानी दुष्प्रचार को उजागर करते हुए कश्मीरियों के अलगाव भाव को समाप्त करना और साथ ही सेना का मनोबल बढ़ाना समय की मांग है। प्रधानमंत्री के दौरे से उपरोक्त दोनों मकसद हासिल हुए हैं। चूंकि जम्मू- कश्मीर में जल्द ही विस चुनाव होने हैं, लिहाजा विरोधी प्रधानमंत्री की सक्रियता को उससे जोड़ रहे हैं। लेकिन अलगाववाद की राजनीति के शिकार रहे कश्मीर को भारत के समीप लाने की इस राजनीति में हर्ज क्या है!
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