Monday 27 October 2014

स्मार्ट सिटी




स्मार्ट सिटी का सपना

Wed, 01 Oct 2014

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 100 स्मार्ट सिटी स्थापित करने का संकल्प लिया है, जिसका स्वागत है। दुनिया की आबादी बढ़ती जा रही है विशेषकर शहरों में। साथ-साथ ऊर्जा, पानी, आक्सीजन की खपत बढ़ रही है। इन संसाधनों की खपत पर नियंत्रण करना जरूरी है। यह कार्य कंप्यूटरों द्वारा किया जा सकता है। जैसे रात में सड़क पर लाइट जलती रहती है इसलिए हर खंभे पर कैमरा लगाया जा सकता है कि किसी पद यात्री के उपस्थित होने पर लाइट जले अन्यथा डिम हो जाए। रश आवर में कई बसें खाली चलती हैं जबकि अन्य में खड़े रहने की जगह नहीं होती है। बस स्टैंड पर कैमरा लगाकर यात्रियों की संख्या को आंका जा सकता है और तद्नुसार अतिरिक्त बसें चलाई जा सकती है। मेट्रो तथा बस का तालमेल बैठाया जा सकता है। किसी विशेष स्टेशन के लिए मेट्रो की अधिक संख्या में टिकट बिकने की सूचना बस कंट्रोल रूम तक पहुंचने से उस मेट्रो स्टेशन से चलने वाली बसों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। किसी यात्री द्वारा ब्लाग पर बताया गया कि ज्युरिख एयरपोर्ट से गंतव्य स्थान जाने के लिए उन्हें हर पड़ाव पर सूचना दी जाती थी कि वे कहां हैं, अगली यात्रा के लिए कितना इंतजार करना होगा तथा गंतव्य स्थान पहुंचने में कितना समय लगेगा।
घरों में लाइट की तेजी को सूर्य के प्रकाश के अनुसार बढ़ाया-घटाया जा सकता है। स्कूल में यदि किसी विषय का शिक्षक अनुपस्थित हो तो दूसरे स्कूल से वीडियो कांफ्रेंस के सहारे छात्रों को पढ़ाया जा सकता है। कार पूल की व्यवस्था की जा सकती है। टै्रफिक चौराहे पर गाड़ियों की संख्या के अनुसार हरी और लाल बत्ताी का समय घटाया-बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार आधुनिक तकनीकों के उपयोग से कम संसाधनों में ऊंचा जीवन स्तर उपलब्ध हो सकता है। इन कायरें को संपादित करने के लिए घर के अंदर और बाहर तमाम सेंसर लगाने होंगे जिससे हर स्थान पर आने जाने वालों की संख्या आदि का आकलन किया जा सके। जाहिर है कि इन कैमरों में आपकी हमारी फोटो भी कैद हो जाएगी। बस तथा मेट्रो स्टेशन पर कैमरे से पता लग जाएगा कि आपने किस स्टेशन के लिए टिकट खरीदा है। आपके आवागमन की पूर्ण जानकारी सरकार को उपलब्ध हो जाएगी। अथवा आपके टेलीफोन को टैप न किया जाए तो भी टेलीफोन कंपनी के पास सूचना रहती है कि आपने कहां से, कब, कितनी देर और किससे बात की। पुलिस द्वारा अपराधों को ट्रैक करने में मोबाइल फोन का यह रिकार्ड कारगर रहता है। घर में लगे बिजली के मीटर से कंपनी को सूचना मिल जाएगी कि आप कितने बजे घर से बाहर जाते हैं और कितने बजे वापस आते हैं।
यूरोपियन यूनियन द्वारा समर्पित एक शोध में चार प्रकार की व्यक्तिगत सूचना का उल्लेख किया गया है। पहली सूचना व्यक्ति की संपत्तिा, आय, उम्र, स्थान, जाति, शिक्षा आदि से संबंधित है। यह सूचना तमाम सरकारी दफ्तरों में आपको देनी होती है। दूसरी सूचना आपके शरीर से संबंधित है, जैसे आपकी बीमारियां अथवा पेसमेकर जैसे उपकरणों की जरूरत के संबंध में। तीसरी सूचना आपके व्यवहार से संबंधित है, जैसे आप चाय पीने कौन से रेस्त्रां में जाते हैं अथवा किन लोगों के साथ मार्निंग वॉक करते हैं। चौथी सूचना आप द्वारा की गई बातचीत की है, जैसे मोबाइल फोन के द्वारा। इसके अलावा आपके द्वारा किस वस्तु को किस दुकान से खरीदा गया है, यह जानकारी आपके डेबिट कार्ड तथा कंपनियों के बिक्री रिकार्ड से निकाली जा सकती है। स्मार्ट सिटी में व्यक्ति हर समय हर स्थान पर कंप्यूटर की निगरानी में रहेगा। उसकी स्वच्छंदता और स्वतंत्रता समाप्तप्राय हो जाएगी। अमेरिकी सरकार की घोषित नीति है कि विदेशी नागरिकों की चौतरफा निगरानी करने का उसे नैतिक अधिकार है। अमेरिकी सरकार द्वारा तमाम देशों के लोगों की व्यापक निगरानी का भंडाफोड़ विकिलीक्स के एडवर्ड स्नोडेन ने किया है। स्नोडेन ने अमेरिका द्वारा की जा रही निगरानी का भंडाफोड़ किया था। स्मार्ट सिटी के तमाम कैमरे, बिजली मीटर, बस तथा मेट्रो की टिकट, रेस्त्रां के बिल आदि की सूचना यदि विदेशी सरकारों को हो जाए तो हमारी आपकी स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता पर भी संकट आ सकता है। भाजपा ने पूर्व में आधार कार्ड का विरोध इसी दृष्टि से किया था।
चुनौती है कि कंप्यूटर के सहयोग से बिजली, पानी और ईंधन तेल की खपत पर नियंत्रण किया जाए और शहर को सुरक्षित बनाया जाए, परंतु इस दौरान एकत्रित की गई सूचना का दुरुपयोग न हो। इक्वाडोर स्थित 'मुफ्त, उदारवाद, खुली सूचना सोसायटी' ने इस दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। पहला सुझाव है कि इंटरनेट के माध्यम से भेजी अथवा पाई गई सूचना को इस तरह रखा जाए, जिससे दूसरे द्वारा इसे जानना तथा दुरुपयोग करना संभव न हो। दूसरे, पीछे से प्राप्त जानकारी हासिल करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाए। जैसे आपने किसी दुकान से विशेष प्रकार का कैमरा खरीदा अथवा आप किसी रेस्त्रां में चाय पीने गए। दुकानदार पर प्रतिबंध होना चाहिए कि इस जानकारी को किसी दूसरे को उपलब्ध न कराए। यह प्रतिबंध बैंक खातों तथा डेबिट कार्ड पर भी लागू होना चाहिए। तीसरा सुझाव है कि एकत्रित सूचना का उपयोग व्यक्ति की सहमति के बाद ही किया जाए। जैसे यदि कोई कैमरे की खरीद की जानकारी चाहता है तो दुकानदार आपको पूछे कि सूचना दी जाए अथवा नहीं। आपकी स्वीकृति के बाद ही सूचना दूसरे को दी जाए। चौथा सुझाव है कि सूचना के गैर कानूनी उपभोग अथवा हस्तांतरण को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया जाए। मैं समझता हूं कि ये सुझाव सही दिशा में हैं। कारण कि किसी तानाशाह के हाथ में ये जानकारियां बहुत ही हानिप्रद सिद्ध हो सकती हैं।
कंप्यूटर से छुटकारा नहीं है। सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार होगा ही। सड़कों पर कैमरे लगेंगे ही। स्मार्ट सिटी बनेंगी ही और इन्हें बनना भी चाहिए। जरूरत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पर्यावरण रक्षा के बीच संतुलन बनाने की है। कहीं ऐसा न हो कि बिजली की खपत कम करने के प्रयास में हम अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्र की संप्रभुता को ही गंवा बैठें। एकत्रित की गई सूचना का दुरुपयोग न हो, इसके लिए कानून बनाना चाहिए।
[लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]
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स्मार्ट सिटी जन

Sun, 26 Oct 2014

स्मार्ट सिटी यानी ऐसा स्वावलंबी आधुनिक शहर जो अपने नागरिकों की हर जरूरत को स्मार्ट तरीके से पूरा करे। हर जनसुविधा न केवल गुणवत्तापरक हो बल्कि किफायती के साथ-साथ बाधारहित भी हो। जहां प्रकृति के साथ विज्ञान के तालमेल का अनूठा संगम दिखता हो, जहां समझदारी भरी आपूर्ति और खपत का संतुलन कचरे या अपव्यय को न्यूनतम कर देता हो। घर बैठे नागरिकों के एक आनलाइन क्लिक पर प्रशासन की हर जानकारी सामने हो। प्रशासनिक निर्णयों में जन-भागीदारी का अहम स्थान हो। दुनिया भर में ऐसे स्मार्ट सिटी को बसाने की कवायद तेज हो गई है। कई देश अपने लोगों को ऐसे शहर की सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। भारत में तेजी से बढ़ते शहरीकरण के दबाव और लोगों को गुणवत्तापरक सुविधाएं मुहैया कराने के अपने दायित्व के चलते मोदी सरकार 100 ऐसे स्मार्ट सिटी बसाने के संकल्प पर आगे बढ़ रही है। शहरों के चयन और उनकी बसावट योजना पर मंथन जारी है। सरकार का दृढ़ निश्चय दिखाता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी स्मार्ट सिटी अस्तित्व में होंगे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अपने परंपरागत आचार, विचार और व्यवहार के लिए खास स्थान रखने वाले हम भारतीय इन शहरों में जीवनयापन लायक स्मार्ट हैं? कहीं भी कचरा बिखेर देना, असभ्यता करने से परहेज न करना और सौंदर्यीकरण वाली चीजों को उखाड़कर घर में इस्तेमाल करने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे अपने कृत्यों से क्या हम स्मार्ट सिटी की अवधारणा को साकार कर पाएंगे। कहते हैं कि आदमी चाहे तो जहां रहता है वहीं स्वर्ग बना दे और चाहे तो नर्क बना दे। क्यों नहीं हम अभी जहां रह रहे हैं उसे ही स्मार्ट सिटी बनाने का उपक्रम करें। उसी हिसाब से अपने कार्य-व्यवहार में बदलाव लाएं। ऐसा करके कम से कम हम स्मार्ट सिटी में रहने के तौर-तरीकों से वाकिफ तो हो जाएंगे। ऐसे में देश में स्मार्ट सिटी और उसके लिए स्मार्ट लोगों की जरूरत की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
अहम सुविधाएं
स्मार्ट सिटी के तीन आधारभूत स्तंभ प्रशासन, बुनियादी और सामाजिक सेवाओं के अलावा कुछ अहम सुविधाएं भी होती हैं।
न्यूनतम कचरा उत्पादन: कचरे पर लगाम लगाने को प्रोत्साहित करने की जरूरत होती है। किसी भी संरचना की कीमत इस आधार पर तय होनी चाहिए कि उसकी सेवाएं कितनी सस्ती और कचरे को हतोत्साहित करने वाली हैं। वर्षा जल भंडारण को बढ़ावा देने से कचरे को न्यूनतम करने और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने में अहम कामयाबी मिल सकती है। सीवरेज के पानी की रिसाइकिलिंग और स्थानीय एसटीपी आधारित जलापूर्ति प्रणाली से कचरा तो कम होगा ही जल भी संरक्षित किया जा सकेगा।
वित्तीय टिकाऊपन: सभी सेवाएं वित्तीय रूप से टिकाऊ होनी चाहिए जिससे गुणवत्ता वाली सुविधाएं देने के दौरान धन बाधा न खड़ी हो।
ऊर्जा कुशलता: ऊर्जा की चिंता स्मार्ट सिटी का अहम अंग है। यातायात प्रणाली, लाइटिंग और अन्य सभी ऊर्जा की जरूरत वाली सुविधाओं में कुशल ऊर्जा इस्तेमाल की प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
मांग प्रबंधन: आपूर्ति को बढ़ाकर मांग को पूरी करने के साथ स्मार्ट सिटी मांग प्रबंधन पर खास जोर देती हैं। इसके लिए बचत को प्रोत्साहित जबकि अत्यधिक खपत को हतोत्साहित किया जाता है।
सूचनाओं की पहुंच में सुधार: शहर से जुड़ी किसी भी सेवा से संबंधित समस्त सूचनाएं, आंकड़े, तथ्य आदि सभी को सुलभ हों। किसी भी विभाग की कोई घोषणा, नियम और कानून-कायदों के जानकारी सभी लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
मूर्त रूप देने वाले तत्व
स्वच्छ तकनीक का इस्तेमाल: विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं। लिहाजा स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम बने हुए हैं। स्वच्छ तकनीक से इस प्रवृत्ति को पीछे धकेला जा सकता है।
आइसीटी का इस्तेमाल: आइसीटी का व्यापक इस्तेमाल आवश्यक है क्योंकि इसी से सूचनाओं का आदान प्रदान और तेज संचार संभव है। अधिकांश सेवाएं आइसीटी आश्रित होनी चाहिए। इससे यात्रा करने की जरूरत खत्म हो जाएगी। लोग घर बैठे सुविधाएं हासिल कर सकेंगे। इससे जाम, प्रदूषण, ऊर्जा इस्तेमाल सब कम होगा।
निजी क्षेत्र की भागीदारी: नवोन्मेष के लिए पीपीपी सरकार को यह सहूलियत देती है कि वह निजी क्षेत्र की क्षमता का इस्तेमाल कर सके।
जन भागीदारी: प्रदर्शन में सुधार के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे हर आदमी प्रत्येक सेवा का मूल्यांकन कर सके।
जनमत
क्या स्मार्ट सिटी बसाकर तेज शहरीकरण से पैदा हुई नागरिक सेवाओं की चुनौती से निपटा जा सकता है?
हां 97 फीसद
नहीं 3 फीसद
क्या स्मार्ट सिटी में रहने के लिए लोगों को भी स्मार्ट बनना होगा?
हां 75 फीसद
नहीं 25 फीसद
आपकी आवाज
बिल्कुल, क्योंकि स्मार्ट सिटी में नवीन उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर सारी शहरीकरण की समस्याओं पर ध्यान रखते हुए ऐसी व्यवस्था व तंत्र विकसित होगा कि उनका समाधान अपने-आप होता चला जाएगा। -अंकेश कुमार
हां बिल्कुल, स्मार्ट सिटी में अति आधुनिक प्रणाली का उपयोग करने के लिए लोगों को शिक्षित होकर स्मार्ट बनना होगा। जिससे वे मिलने वाली सुविधाओं का उपयोग कर देश के विकास में योगदान कर सकें। -मनीषा श्रीवास्तव
स्मार्ट बनना थोड़ा बहुत जरूरी है। -अहमद शेख ओबैदुल्लाह
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पूरी करेंगे जरूरत

26 Oct 2014 

भाजपा की नेतृत्व वाली सरकार ने देश में सौ स्मार्ट सिटी को बसाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। ये मेट्रो शहरों के बगल में उपनगरीय टाउनशिप की तरह हो सकते हैं। इनमें से कईयों को दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर (डीएमआइसी) पर बसाया जा सकता है। इन दोनों शहरों के बीच अनुमानित एक हजार किमी के इस औद्योगिक गलियारे में करीब 90 अरब डॉलर की पूंजी के निवेश का अनुमान है। इस निवेश से एक डेडीकेटेड रेल फ्रेट कॉरीडोर के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्रों, बिजनेस पार्को और स्मार्ट सिटीज को भी विकसित किया जा सकेगा।
चीन की तर्ज पर भारत में भी उल्लेखनीय रूप से शहरीकरण होने का अनुमान है। पिछले साल तक चीन की आधी आबादी शहरों में लगने लगी थी और अगले पांच साल के भीतर करीब 75 फीसद जनसंख्या का ऐसा कायाकल्प हो जाने का अनुमान है। सांख्यिकीय रूप से दुनिया भर में ग्रामीण इलाकों से ज्यादा लोग अब शहरों में रहने लगे हैं। भारत में करीब एक तिहाई आबादी शहरों में रहती है, लेकिन अर्थव्यवस्था में विकास के साथ इस प्रवृत्ति में भी तेजी आएगी और ऐसे में कुशल श्रम की मांग में बढ़ोतरी होगी। एक ही समय पर खेती की उत्पादकता बढ़ाने के साथ उसमें लगी मानव शक्ति को कम करने की चुनौती भी होगी। बचे हुए श्रम को उद्योगों को स्थानांतरित करना पडे़गा जिनकी उत्पादकता बहुत अधिक है। यह तरीका अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने में मददगार होगा।
बहुआयामी योजना और संगठन
स्मार्ट सिटीज के लिए बहुआयामी योजना और संगठन की जरूरत होती है जिसे एक केंद्रीय नियोजन संस्था के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। बिना किसी राज्य स्तरीय दखलंदाजी के वर्तमान शहर रहने के अयोग्य और अराजक हो जाएंगे। लिहाजा यहां से लोगों का दूसरे स्थानों पर बसने की दर को समझा जा सकता है। नतीजतन नए शहरों को उपनगरीय शहरों और वर्तमान शहरी क्षेत्रों के इर्द-गिर्द ही बनाना होगा। कम कार्बन उत्सर्जन, खाली हरे स्थानों और बेहतर तरीके से नियोजित बुनियादी सुविधाओं के रूप में ऐसे उपनगरीय शहरों को बसाने में इनके टिकाऊपन का खास ध्यान रखना होगा। नतीजतन, स्मार्ट शहरों के लिए नई यातायात प्रणाली को विकसित करना होगा जिससे भीड़भाड़ की समस्या से निजात मिल सके। इसके अतिरिक्त इन शहरों में बनाए जाने वाले घरों में कम ऊर्जा वाले मैटेरियल्स के इस्तेमाल की जरूरत होगी। इसके साथ ही व्यापक स्तर पर जल भंडारण तकनीक और नागरिकों को इलेक्ट्रानिक रूप से मुहैया कराई जाने वाली सरकारी सेवाओं के लिए क्लाउड आधारित आइटी सिस्टम की आवश्यकता भी होगी। ऐसे शहर अपनी हर जरूरत को पूरी करने में खुद ही सक्षम होंगे। वहां के निवासियों को वहीं रोजगार मिलेगा और बड़े पैमाने पर कंप्युटिंग से भी निजात मिलेगी।
सिंगापुर से सबक
दुनिया भर में स्मार्ट सिटी बसाने की होड़ लगी हुई है। सिंगापुर ने अपने सीमित भू रकबे 700 वर्ग किमी के क्षेत्र में कुछ स्मार्ट ग्रीन कारीडोर, शहरी टाउनशिप सफलतापूर्वक तैयार किया है। रणनीतिक रूप से यहां का यातायात और जल प्रबंधन तंत्र विस्तृत रूप से आइटी का इस्तेमाल करता है। भू इस्तेमाल की योजना विश्वस्तरीय है जिसको पूरी दुनिया में वाहवाही मिल चुकी है।
सिंगापुर दुनिया का सबसे घना आबादी वाला शहर होने के बावजूद यहां के स्थानीय प्रशासन ने सघन लघु टाउनशिप के पास पार्को के निर्माण से इसे एक रहने योग्य माहौल में बदल दिया है। इन सभी स्थानों के मेट्रो रेल प्रणाली से जुड़े होने के चलते सड़क भीड़भाड़ में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन की सरकार ने शहरी नियोजन में सिंगापुर की विशेषज्ञता का बड़े पैमाने पर लाभ लिया है। 1990 के मध्य से सिंगापुर से एक साझा उपक्त्रम के तहत चीन सिझोऊ में एक मॉडल बिजनेस पार्क और शहर विकसित किया है। आज यह तेजी से विस्तार लेते इस देश के लिए ऐसे विकास का मॉडल बन चुका है। इसके बाद सिंगब्रिज ने एक साझा उपक्रम तियानजिन में एक इको सिटी बनाने और गुआंगझाऊ में एक-एक नॉलेज सिटी बनाने के लिए किया गया। इन स्मार्ट सिटीज को अत्यधिक शहरी क्षेत्र में उपनगरीय टाउन के रूप में बसाया गया जिससे टिकाऊ होने के चलते रोजगार भी मुहैया हुआ।
भारत में भी सिंगापुर की कंपनियां मध्य 1990 से ही उच्च कोटि के आइटी और बिजनेस पार्क के निर्माण में अगुआ रही हैं। इन कार्यो को एक बेंचमार्क के रूप में देखा जाता है। हालांकि इस अनुभव को और तेज किए जाने की जरूरत है। मेरा विश्वास है कि भारत में स्मार्ट सिटीज की योजना और निर्माण को सरकार की नीतियों के दायरे में रहकर निजी क्षेत्र की भागीदारी से तेज किया जा सकता है। स्मार्ट सिटी के निर्माण के लिए जरूरी गतिविधियों को योजना, शहरी विकास और आइटी से जुड़े विशेषज्ञों से निर्मित कंसोर्टियम के दायरे में लाया जा सकता है। इससे कलस्टर जैसे तमाम विकास कार्यो के दौरान आने वाली मुश्किलों को दूर किया जा सकता है। लिहाजा स्मार्ट सिटीज के निर्माण को लेकर भारत और सिंगापुर के साझेदारी की क्षमता को खारिज नहीं किया जा सकता है।
-गिरिजा पांडे [एक्जीक्यूटिव चेयरमैन, एपेक्स एवलोन कंसल्टिंग पीटीई लिमिटेड]
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कितने उपयोगी होंगे स्मार्ट शहर!

प्रसंगवश
भारत डोगरा
शहरी विकास का इस समय सबसे चर्चित मुद्दा यह है कि देश में निकट भविष्य में 100 स्मार्ट सिटी बनाई जाएंगी। स्मार्ट सिटी के लिए कुछ शहरों का चुनाव हो रहा है जिनमें या जिनके पास स्मार्ट सिटी विकसित होंगी। स्मार्ट सिटी की अवारणा ऐसे विशेष शहरों या शहरी क्षेत्रों के रूप में है जिनमें सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी और इस सोच के अनुकूल ही इनका ढांचागत विकास होगा। सूचना व संचार तंत्र में व कंप्यूटर संचालित व्यवस्थाओं में यह शहर विशेष तौर पर आगे होंगे। स्मार्ट सिटी को ऐसा स्थान माना जा रहा है जहां विश्व स्तर के बड़े कॉरपोरेट व बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना कार्यालय भी स्थापित कर सकें व इसके अनुकूल जीवनशैली भी उनके अधिकारियों को मिल सकें। इस तरह स्मार्ट सिटी की सोच कोई अलग सोच नहीं है अपितु यह अर्थव्यवस्था की उस व्यापक सोच से जुड़ी हुई सोच है जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों का तेज प्रसार देश में होना है और कारपोरेट वर्चस्व को तेजी से बढ़ना है। अर्थव्यवस्था और समाज संबंधी एक बेहद चिंताजनक सोच को हाल के समय में मजबूती मिली है कि विभिन्न क्षेत्रों में अमीरों और गरीबों का स्थान अलग- अलग है। जैसा कि दिनोंदिन देखा जा रहा है, अमीरों की कालोनियां अलग हैं, गरीबों की बस्तियां अलग हैं। अमीरों के अस्पताल अलग हैं, गरीबों के अलग हैं। अमीरों के स्कूल अलग हैं, गरीबों के स्कूल अलग हैं। अब इसी सोच को एक कदम और आगे ले जाया जा रहा है कि कुछ नए शहरी क्षेत्र ऐसे विकसित हों जो अमीरों के लिए अलग से बसे हो। इस समय हमारे शहरों की जो स्थिति है उसमें निर्धन वर्ग, बेघर लोगों, स्लमवासियों, मजदूरों-मेहनतकशों की बहुत चिंताजनक स्थिति है। मध्यम वर्ग की भी अनेक समस्याएं हैं। आवास की समस्या इन सभी को है। अन्य बुनियादी जरूरतों का अभाव भी कमोबेश सबको झेलना पड़ रहा है, जबकि सार्वजनिक यातायात, सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों आदि की स्थिति सुधारने व प्रदूषण तथा गंदगी कम करने की बड़ी चुनौतियां सामने हैं। ऐसे में स्मार्ट सिटी की योजना को उच्च प्राथमिकता मिलने के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि शहरी विकास के अन्य महवपूर्ण कार्य पीछे पड़ सकते हैं और शहरी जरूरतमंदों की जो प्राथमिकताएं पहले से उपेक्षित हो रही हैं, उन्हें और भी हाशिए पर धकेला जा सकता है। पहले से बनी बस्तियों में अपेक्षाकृत कम खर्च में अधिक लोगों को लाभ मिल सकता है। जहां जो मेहनतकश लोग रहते हैं, उन्हें थोड़ी-सी सहायता व प्रोत्साहन सरकार से मिले तो वे कुशलता और रचनात्मकता के बल पर आवास व अन्य बुनियादी जरूरतों को सुधारने में महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं। दूसरी ओर स्मार्ट सिटी में जो भारी-भरकम खर्च होगा उससे वास्तविक जरूरतमंदों की कोई समस्या हल होने वाली नहीं है। स्मार्ट सिटी की दौड़ में पानी का संकट और बढ़ सकता है। अधिकांश स्थानों का जलस्तर नीचे जा रहा है और भूजल की स्थिति चिंताजनक है। आधुनिक सुविधाओं के शहर बनेंगे तो उन्हें बहुत पानी चाहिए होगा। पानी की बढ़ी खपत पहले से बसी आसपास की आबादियों के लिए जल-संकट को और बढ़ाएगी। यह सवाल भी है कि सीमित प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पहले से बसी आबादी के हित में किया जाए या उनका उपयोग ऐसी स्मार्ट सिटी के लिए हो जहां कि वैभवशाली जीवन- शैली व शहरी नियोजन स्थाई तौर पर अािक प्राकृतिक संसानों की मांग करेगा। स्मार्ट सिटी की कल्पना प्रदूषण-मुक्त शहरों के रूप में इस तरह की गई है कि वहां प्रदूषण करने वाले उद्योग नहीं होंगे। किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि यह स्मार्ट सिटी पर्यावरण रक्षा की दृष्टि से बेहतर होंगी। यहां के वैभव और विलासिता के साजोसामान व जीवन-शैली निश्चय ही पर्यावरण के लिए बोझ होगी। इस कारण पर्यावरण को जो क्षति होगी वह इन स्मार्ट सिटी में नजर नहीं आएगी, पर अन्यत्र खूब प्रदूषण फैलेगा। यानी इन स्मार्ट सिटी से प्रदूषण कम नहीं होगा, अपितु वह शिफ्ट का दिया जाएगा ताकि स्मार्ट सिटी के निवासी इससे परेशान न हों। इस बारे में बहुत ध्यान से विचार करने की जरूरत है कि न्याय, समता व पर्यावरण रक्षा की दृष्टि से शहरी विकास की वास्तविक प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए, और क्या ‘स्मार्ट सिटी’ की अवधारणा इन प्राथमिकताओं के अनुकूल है या नहीं।


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